अमेरिका का नया टैरिफ और भारत की फार्मा इंडस्ट्री

 

अमेरिका का नया टैरिफ और भारत की फार्मा इंडस्ट्री


अमेरिका ने हाल ही में भारत के फार्मास्यूटिकल उत्पादों पर टैरिफ लगाने का निर्णय लिया है। यह टैरिफ 1 अक्टूबर 2025 से प्रभावी होगा और इसमें ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाएँ शामिल हैं। इस कदम का असर न केवल व्यापारिक रिश्तों पर होगा, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा और दवाओं की सुलभता पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा।


अमेरिका का टैरिफ: असर क्या होगा?

            अमेरिका ने घोषणा की है कि वह भारतीय दवाओं पर 100% टैरिफ लगाएगा। यह भारत की फार्मा कंपनियों के लिए गंभीर चुनौती है, क्योंकि अमेरिका भारतीय दवाओं का सबसे बड़ा निर्यातक है। इससे सन फार्मा, सिप्ला, ज़ाइडस जैसी कंपनियों के शेयरों में गिरावट देखी गई है।


भारत की दवाओं का वैश्विक महत्व

            भारत को विश्व की "फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड" कहा जाता है। भारतीय दवाएँ अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका जैसे देशों में सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाएँ पहुँचाती हैं। भारत के पेटेंट कानूनों ने दवाओं की कीमतों को नियंत्रित रखा है, जिससे लाखों लोगों को जीवनरक्षक दवाएँ सस्ते दामों पर मिल पाती हैं।


अमेरिकी दबाव और सस्ती दवाओं की चुनौती

            अमेरिका और बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियाँ भारत के पेटेंट कानूनों को चुनौती देती रही हैं। उनका उद्देश्य दवाओं के पेटेंट को बढ़ाना और कीमतें बढ़ाना है। इससे न केवल भारत में, बल्कि विकासशील देशों में भी दवाओं की सुलभता प्रभावित होती है।


भारत की रणनीति: नए बाजारों की ओर

            अमेरिका से बढ़ते टैरिफ के बावजूद, भारत को अपनी दवा निर्यात नीति में बदलाव करना होगा। भारत को यूरोपीय संघ, एशियाई देशों और अफ्रीका जैसे नए बाजारों की ओर रुख करना चाहिए। इसके साथ ही, घरेलू उत्पादन बढ़ाना और आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करना भी आवश्यक है।


निष्कर्ष

            अमेरिका का यह कदम न केवल व्यापारिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए भी गंभीर चुनौती प्रस्तुत करता है। भारत को अपनी दवा नीति में सुधार करना होगा ताकि सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाएँ सभी तक पहुँच सकें।

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